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।।ओ३म्।। क्या करवाचौथ का विधान वेद में है? और क्या इसका करना शुभ फलदायक है?

  • Writer: Aryavart Regenerator
    Aryavart Regenerator
  • Nov 4, 2020
  • 2 min read


-निशांत आर्य





करवाचौथ का विधान न तो वेद, मनुस्मृति, ब्राह्मण, आरण्यक, में है और न ही इसका उल्लेख रामायण, महाभारत, आदि आर्ष इतिहास में इसका कोई उल्ल्लेख मिलता है।


मनुस्मृति कहती है कि- धर्म जिज्ञाषाणां प्रमाणं परमं श्रुति। जिसको धर्म अधर्म आदि के विषय मे ठीक ठीक जानकारी चहिये उसके लिए परम प्रमाण श्रुति= वेद ही है !


और मिमांसा दर्शन में धर्म कि परिभाषा करते हुए कहा है कि-चोदनालक्षणोऽर्थो धर्मः॥

-पू॰ मी॰ अ॰ 1। पा॰ 1। सू॰ 2॥


भाष्यम्-( चोदना॰) वेदवाण्या या सत्यधर्माचरणस्य प्रेरणास्ति तयैव सत्यधर्मो लक्ष्यते। योऽनर्थादधर्माचरणाद् बहिरस्त्यतो धर्माख्यां लब्ध्वाऽर्थो भवति। यस्येश्वरेण निषेधः क्रियते सोऽनर्थ-रूपत्वादधर्म्मोऽयमिति ज्ञात्वा सर्वैर्मनुष्यैस्त्याज्य इति॥


अर्थात-(चोदना॰) ईश्वर ने वेदों में मनुष्यों के लिए जिस के करने की आज्ञा दी है, वही धर्म और जिस के करने की प्रेरणा नहीं की है, वह अधर्म कहाता है। परन्तु वह धर्म अर्थयुक्त अर्थात् अधर्म का आचरण जो अनर्थ है उस से अलग होता है। इस से धर्म का ही जो आचरण करना है, वही मनुष्यों में मनुष्यपन है॥


अब व्यक्ति को विचार करना चाहिए जब वेद में जिसको करने कि आज्ञा है उसका करना और जिसको करने की आज्ञा नही है उसका न करना ही धर्म है और मनुस्मृति के अनुसार परम प्रमाण धर्म के संदर्भ में वेद है तो क्या वेद में करवाचौथ का विधान है?


यह ऊपर ही निर्दिष्ट कर दिया गया है कि वेदादिशास्त्रो व मनुस्मृति व आर्ष ऐतिह्य में करवाचौथ का कोई विधान नही है। पुनः विधान न होने से वो विहित कर्म नही हुआ जब नही हुआ तो उसका करना अधर्म ही है।


अतः जो लोग वेद आदि परम प्रमाण के विरुद्ध कुछ व्रत करते है उसका शुभ परिणाम तो कुछ नही मिलेगा दुष्परिणाम अवश्यमेव मिलेगा।


वेदिक्त विधान न होने करवाचौथ का करना पूर्णतः पाखंड है।


वेद में व्रत का अर्थ है—-

अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छ्केयं तन्मे राध्यतां इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि !!

( यजुर्वेद 1–5)


हे व्रतों के पालक प्रभो ! मैं व्रत धारण करूँगा , मैं उसे पूरा कर सकूँ , आप मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करें… मेरा व्रत है—-मैं असत्य को छोड़कर सत्य को ग्रहण करता रहूँइस मन्त्र से स्पष्ट है कि वेद के अनुसार किसी बुराई को छोड़कर भलाई को ग्रहण करने का नाम व्रत है..शरीर को सुखाने का , रात्रि के 12 बजे तक भूखे मरने का नाम व्रत नहीं है..


चारों वेदों में एक भी ऐसा मन्त्र नहीं मिलेगा जिसमे ऐसा विधान हो कि एकादशी , पूर्णमासी या करवा चौथ आदि का व्रत रखना चाहिए और ऐसा करने से पति की आयु बढ़ जायेगी … हाँ, व्रतों के करने से आयु घटेगी ऐसा मनुस्मृति में लिखा है


पत्यौ जीवति तु या स्त्री उपवासव्रतं

चरेत् !आयुष्यं बाधते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति !!


जो पति के जीवित रहते भूखा मरनेवाला व्रत करती है वह पति की आयु को कम करती है और मर कर नरक में जाती है


…अब देखें आचार्य चाणक्य क्या कहते है —

पत्युराज्ञां विना नारी उपोष्य व्रतचारिणी !

आयुष्यं हरते भर्तुः सा नारी नरकं व्रजेत् !!

( चाणक्य नीति – 17–9 )


जो स्त्री पति की आज्ञा के बिना भूखों मरनेवाला व्रत रखती है , वह पति की आयु घटाती है और स्वयं महान कष्ट भोगती है …


।।ओ३म्।।

 
 
 

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