#प्रकृति_अविकारिणी_है
- Aryavart Regenerator
- Aug 28, 2020
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।।ओ३म्।।
हमने कहा था कि प्रकृति अविकारिणी है । इसको न समझते कर कुछ लोग प्रतिवाद करते हुए कहते है कि नही! बिना विकार के प्रकृति से सृष्टि उत्पत्ति संभव नही है।
समीक्षा- प्रथम तो यह कि सत्व रज और तम की साम्यावस्था का नाम प्रकृति है। क्यो कि इन तीनो को मिलाकर जो एक संघात है वो प्रकृति कहता है और वह प्रकृति अविकारिणी ही होती है । साम्यावस्था कभी भी विकारिणी नही हो सकती है ।
महर्षि दयानंद सरस्वती जी भी अष्टम समुल्लास में प्रकृति का लक्षण करते हुए वे सांख्य को उधृत कर के लिखते है कि-
"सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः प्रकृतेर्महान् महतोऽहंकारोऽहंकारात् पञ्चतन्मात्रण्युभयमिन्द्रियं पञ्चतन्मात्रेभ्यः स्थूलभूतानि पुरुष इति पञ्चविशतिर्गणः।। -सांख्यसूत्र।।
(सत्त्व) शुद्ध (रजः) मध्य (तमः) जाड्य अर्थात् जड़ता तीन वस्तु मिलकर जो एक संघात है उस का नाम प्रकृति है। उस से महत्तत्त्व बुद्धि, उस से अहंकार, उस से पांच तन्मात्र सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्रओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चौबीस और पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर हैं। इन में से प्रकृति अविकारिणी और महत्तत्त्व अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूलभूतों का कारण है। पुरुष न किसी की प्रकृति उपादान कारण और न किसी का कार्य्य है।"
यहां पर महर्षि ने प्रकृति को अविकारिणी बतलाते हुए महत्तत्त्व अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य्य और इन्द्रियां मन तथा स्थूलभूतों का कारण बतलाया है।
महर्षि का ऐसा लिखना सर्वथा युक्ति संगत है। क्यो की यदि कार्य जगत का मूल कारण प्रकृति अपनी साम्यावस्था में ही विकारिणी हो जाएगी तो विकारिणी होने पर वो साम्यावस्था वाली कैसे हो सकेगी ? उक्त अवस्था के न होने से फिर वो मूल प्रकृति नही ठहरेगी। यह कार्यजगत भी मूल प्रकृति में विकार का परिणाम है। अतः सिद्ध है कि प्रकृति अविकारिणी ही होती है विकारयुक्त तो कार्य जगत ही होगा न कि मूल प्रकृति ।
जगत मिथ्या है ऐसा शिवांश पांडे जी का कहना था इस विषय पर मैंने असहमति जतायी थी अतः इस विषय पर कल एक पोस्ट आ सकती है ।
- निशांत आर्य ।
।।ओ३म्।।
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