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थैंक्स भारत' वाले वक्ता जी की त्रुटियाँ भाग-२

  • Writer: Aryavart Regenerator
    Aryavart Regenerator
  • Jul 12, 2020
  • 4 min read

रामायण का महाझूठ भाग-१ क्या रामायण एक डाकू ने लिखी?' की समीक्षा ।(खंड-१)

- कार्तिक अय्यर



( दिनांक-१२/८/२०२०)


।।ओ३म्।।


प्रिय पाठकों! श्री वक्ता जी ने लगभग दो साल पहले रामायण के विषय में एक वीडियो बनाई थी, जिसमें उन्होंने वाल्मीकि जी के डाकू होने तथा " रामायण राम के १४००० साल पहले नहीं लिखी गई"- इस पर चर्चा की थी। लिंक यों है-


https://youtu.be/ENe5Z9QiHWw


अब वीडियो को सुनें और वक्ताजी की त्रुटियों की ओर ध्यान दें। इनकी त्रुटियाँ इतनी भयंकर है, कि इन्होंने उत्तरकांड के साथ-साथ सीतात्याग और शंबूक वध को भी सही मान लिया, जिसको आर्यसमाज व अन्य शोधार्थी विद्वान भी प्रक्षेप मानते हैं। अब समीक्षा पढ़ें-



१:००- माता सीता की पवित्रता की प्रतिज्ञा करते वक्त महर्षि वाल्माकि अपने बारे में बताते हैं-


१:२२- तक 'प्रचेतसोsहम्..' श्लोक पढ़ते हैं।और पहले कह चुकते हैं कि ये ' वाल्मीकीय रामायण' का भाग है। 'सीता जी की पवित्रता की साक्षी में वाल्मीकि जी का यह कथन आया है।'

श्लोक का संदर्भ भी नहीं दिया, दिया होता तो अपने आप का खंडन कर देते।


उत्तर-

वक्ता जी का दिया प्रमाण यों है-


प्रचेतसो ऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ।।(वा० रा ७.९६.१९ ।)

'मैं प्रचेतस का दसवां पुत्र वाल्मीकि हूँ। मैंने जन्म से लेकर अबतक कोई भी पाप कर्म नहीं किया है।'


इस श्लोक का उन्होंने संदर्भ नहीं दिया है। यदि देते,तो खुद की पोल खोल देते। वक्ताजी का ये श्लोक उत्तरकांड का है, जिसे इनके साक्षी स्वामी जगदीश्वरानंद जी तथा अन्य आर्य व आर्येतर विद्वान जिसको प्रक्षेप मानते हैं। स्वयं वक्ता जी भी ऐसा ही अपने एक वीडियो में मानते हैं-


रामायण महामिलावट- ढोंगियों ने पूरा कांड ही मिला दिया।


https://youtu.be/Vec1nv0QnEo



यहाँ ०:४९- तक कह रहे हैं कि केवल ६ कांड ही वाल्मीकि के हैं, बाकी उत्तरकांड ढोंगी पंडों ने मिला दिया है। इसमें केवल कल्पनाओं का संसार है।


दरअसल कई रामायण के संस्करणों में उत्तरकांड गायब है। रामोपाख्यान पर्व, कंबरामायण आदि में इसका अभाव है। फलश्रुति युद्धकांड के अंत में है, जो रामायण की समाप्ति सिद्घ करती है।

अब पाठकगण स्वयं देख लेवें कि वक्ताजी एक वीडियो में उत्तरकांड को वाल्माकि की रचना नहीं मानते और इस वीडियो में उसी का प्रमाण दे रहे हैं। मतलब अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु कुछ भी चलेगा! पर शंबूक वध और सीतात्याग का आक्षेप होने पर उत्तरकांड 'ढोंगी पंडों' ने मिलाया है।


यदि वक्ता जी कहें कि 'उत्तरकांड में भले गप्पें हों, पर कुछ इतिहास भी संभव है'- तो ठीक नहीं। क्योंकि इसको मानने के कारण आप बाकी पुराणों से कैसे इनकार करेंगे? आपके अनुसार वाल्मीकि जी ने जीवन भर कोई पाप न किया, पर अन्यत्र पुराणों में यह साफ लिखा है कि वे पहले डाकू थे बाद में सुधरकर ऋषि-मुनि बन गये-



(ब्रह्मांडपुराण, आध्यात्मरामायण,अयोध्याकांड, सर्ग 92/65-67,76-81,83-86)

अर्थात पूर्वकाल में मैं भीलों के साथ रहता था और उन्हीं के साथ रह कर बड़ा हुआ।मैं निरंतर शूद्रों के आचरणों में रत रहता था. मैं जन्म मात्र का ब्राह्मण था।उस समय चोरों के समागम से मैं भी पक्का चोर हो गया था।एक दिन एक घोर वन में मैं ने साक्षात सप्तर्षियों को जाते देखा। उन के दर्शनमात्र से मेरा अंत:करण शुद्ध हो गया और मैं धनुष आदि को फेंक कर पृथ्वी पर दंडवत करने लगा, मुझे अपने सामने

पड़ा देख कर वे मुनि बोले, "तू इसी स्थान पर रह कर एकाग्र मन से सदा "मरामरा' जपा कर, जब तक हम लौट न आएं तब तक तू हमारे कश्चनानुसार इस का जाप कर।"

इस तरह बहुत समय तक निश्चलतापूर्वक रहने के कारण मुझ पर वल्मीक (मिट्टी का ढेर सा अर्थात् बांबी) बन गया।एक हजार युग बीतने पर वे मुनि वापस आए व मुझ से कहने लगे, "निकल आओ।" जिस तरह कुहरे को पार कर के सूर्य निकल

आता है, उसी तरह मैं वल्मीक से निकला। तब उन मुनियों ने कहा, “हे मुनि, तुम वल्मीक से निकले हो, अत: तुम वाल्मीकि हो।" इस से भी यही सिद्ध होता है कि वाल्मीकि जन्म से ब्राह्मण थे, परंतु कुछ समय तक वह भीलों और डाकुओं के साथ रहे थे।


वाल्मीकि जी अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण थे। पर कुछ समय तक व्याधकर्म करते रहे। उसके बाद 'मरा-मरा' जपकर ऋषि-मुनि बन गये।

(गीताप्रेस सं.स्कंदपुराणांक पृ. ३७१,७०९,१०२४ )


अब वक्ताजी जिस उत्तरकांड को 'ढोंगियों' की रचना कहते हैं, इनके स्वमतानुसार पुराण भी उन्हीं की रचना है। तब फिर पुराणों की बातें गलत और आपकी बात सही कैसे मान लें?

उत्तरकांड के अनुसार वाल्मीकि जी ने जीवनभर पाप न किया और अन्य अनार्ष पुराणों में चोर-डाकू होने की चर्चा है। तब फिर एक को गलत, और दूसरे को सही कैसे कह सकते हैं?


एक अन्य ग्रंथ 'भारतसार' के अनुसार तो वाल्मीकि जी पूरी तरह ब्राह्मण के भी पुत्र नहीं थे! देखिये-


'भिल्लिकागर्भसम्भूतो वाल्मीकिश्च महामुनि।

तपसा ब्राह्मणो जातस्तस्माज्जातेरकारणम्।।'

( भारतसार अ.५५ श्लोक २१)


'भीलना को गर्भ से उत्पन्न होकर वाल्माकि मुनि तप करके ब्राह्मण बन गये।अतः ब्राह्मण बनने के लिये जन्म कारण नहीं है।'

[ संदर्भ- 'पौराणिक पोल प्रकाश' है।३०६]


यह संदर्भ आर्यसमाजी पं मनसाराम जी 'वैदिक तोप' ने दिया है।

अब इस तरह न तो वाल्मीकि जी पूर ब्राह्मणपुत्र रहे न ही जन्मभर तक डाकूपन के दोष से मुक्त रहे।


समाधान- वक्ताजी इतने पापड़ बेलने की जगह सीधा मनुस्मृति आदि से प्रमाण दे देते कि देखो! यदि हम मान भी ले कि महर्षि वाल्मीकि जी कभी डाकू रहे हों, तो भी कोई अंतर नहीं आता। हम गुण-कर्म-स्वभाव से वर्णव्यवस्था मानते हैं, और कोई भी तप करके ब्राह्मणत्व पा सकता है, यहाँ तक कि ऋषि-मुनि भी बन सकता है।


परंतु आगे जाकर वक्ताजी कहते हैं कि कोई भी चोर-डाकू सुधरकर भी ऋषि-मुनि नहीं बन सकता। वो भी इनका मिथ्या अप्रमाण कथन ही है। इन्हें कोई शास्त्र वचन देकर अपनी बात रखनी थी, पर भोले दर्शकों और अपने चमचों के सामने गप्प मारने में क्या कमती है!


इस लेख में इतना ही। अगले लेख में इसी वीडियोज़ की और भी सैद्धांतिक त्रुटियाँ उभारी जायेंगी। वक्ताजी और उनके युवाओं(यानी चमचों) को हमारा खुला चैलेंज है- हमारे लेखों व भावी वीडियोज़ का खंडन करें अन्यथा अपनी भूल वीडियोज़ में सुधार करे।


धन्यवाद ।

नमस्ते, ओ३म्।

 
 
 

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