भगवान शब्द का प्रयोग ।
- Aryavart Regenerator
- Jul 8, 2020
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महर्षि दयानंद सरस्वती जी अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में ईश्वर के नाम का वर्णन करते हुए ८८वें नाम के वर्णन में वे भगवान शब्द का निर्वचन करते हुए लिखते है कि- (भज सेवायाम्) इस धातु से ‘भग’ इससे मतुप् होने से ‘भगवान्’ शब्द सिद्ध होता है। ‘भगः सकलैश्वर्य्यं सेवनं वा विद्यते यस्य स भगवान्’ जो समग्र ऐश्वर्य से युक्त वा भजने के योग्य है, इसीलिए उस ईश्वर का नाम ‘भगवान्’ है।
प्रथम संस्करण में महर्षि ने इतना विशेष लिखा है कि― "भगो विद्यते यस्य स भगवान् अनंत ज्ञान अनंत वैराग्यादि नित्य गुणों से युक्त होने से परमेश्वर का नाम भगवान् है।"
काशिका ४,४,१३९ में यह बताया है कि भग किसे कहते है।- श्रीकामप्रयत्नमहात्म्यवीर्ययशस्सू भग शब्दः
अर्थात- श्री, काम, प्रयत्न महात्म्य , वीर्य और यश- इन अर्थो में भग शब्द का प्रयोग होगा है।
ये सब पदार्थ ईश्वर में विद्यमान है अतः उसे भगवान् कहते है । किन्तु लोक में भी भगवान् शब्द का प्रयोग पूजनीय अर्थात सम्मान के अर्थ में प्रयोग होता है।
उसका कारण यह है कि ऊपर श्रीकामादि...काशिकाकार ने जो बताया है वो लोक में दिव्य आत्माएं जो है जैसे कि ऋषि , महर्षि व अन्य महापुरुष जैसे कि श्री राम कृष्ण आदि तो इनमें भी विद्यमान है। अतएव इन्हें भी भगवान् कहा जाता है। यह काशिका से सिद्ध है।
इसी कारण जो महर्षि पाणिनि हुए है उसके लिए महर्षि पतञ्जलि ने अपने महाभाष्य में अनेक बार आचार्य, महर्षि, या भगवान् आदि कर के स्मरण किया है। जिसको देखना हो महाभाष्य में देख लेवे ।
लेकिन भगवान् शब्द मुख्यार्थ में ईश्वर के लिए ही प्रयोग होता है। इसका मूल वेद में है- ऋग्वेद ७,४१,५ - भग एव भगवानस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तः स्याम। आदि
श्वेत० उपनिषद ३,११ में स्प्ष्ट कहा है कि-
"सर्व व्यापि स भगवान्"
अतः कोई भी व्यक्ति ऋषि आदि दिव्य आत्माओ के लिए भगवान् शब्द का प्रयोग करता है तो इसमें कुछ भी अनुचित नही है यह शास्त्रीय है।
अतः हम भगवान् ब्रह्मा, भगवान् विश्वामित्र, भगवान् व्यास , भगवान् पाणिनि, भगवान् दयानंद आदि प्रयोग कर सकते है। और मुख्य रूप से ईश्वर के लिए तो प्रयोग होता ही है।
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