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वक्ताजी द्वारा बनाये गये वीडियो- 'रामायण की महाझूठ-२ व्यभिचारी दशरथ की तीन पत्नियां?' पर एक चिंतन

  • Writer: Aryavart Regenerator
    Aryavart Regenerator
  • Jul 9, 2020
  • 10 min read




- कार्तिक अय्यर


(दिनांक-९/०७/२०२०)



।।ओ३म्।।


।।भूमिका।।


प्रिय पाठकों! श्री वक्ता जी ने दो वर्षों पहले उपरोक्त शीर्षक का वीडियो बनाया था। उसका लिंक यों है-


https://youtu.be/nWwTZe_wDeA


दो वर्ष पहले, १ लाख व्यू वाला वीडियो है। १५:२८ मिनट इसकी अवधि है।


इस वीडियो में राजा दशरथ के तीन विवाह किये जाने पर लीपापोती की गई है।इसमें इतनी गंभीर गलतियाँ हैं, कि क्या बतायें! शीर्षक रखा है- 'रामायण की महाझूठ' ऐसा सुनकर लगता है कि रामायण में झूठी बातें आई हैं, उनको आप बता रहे हैं। 'रामायण के नाम पर महाझूठ' या ऐसा कुछ शीर्षक होता,तो कुछ समझ में भी आता। अस्तु!

दरअसल एक साथ तीन विवाह करना ही वेदविरुद्ध है फिर चाहे जिस उद्देश्य से यह काम किया जाये ,तो गलत ही है। वेद में लिखा है कि -


अथर्ववेद ७/३८/४ पत्नी कहती हैं तुम केवल मेरे बनकर रहो. अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो।


ऋग्वेद १०/१०१/११ में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता हैं वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता हैं अर्थात परतंत्र हो जाता हैं ,इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना है।

त नहीं हैं।


ऋग्वेद १०/१०१/११ के अनुसार दो पत्नियां जीवन को निरुदेश्य बना देती हैं।


इसी तरह अथर्ववेद ३/१८/२ में प्रार्थना है कि 'कोई भी स्त्री सह–पत्नी के भय का कभी सामना न करे।


अथर्ववेद ७/३८/४ में पत्नी की यह हार्दिक अभिलाषा व्यक्त की गई है कि 'तुम केवल मेरे हो अन्य स्त्रियों की चर्चा भी न करो।'


( साभार:- डॉ विवेक आर्य जी के कार्य)


इस तरह वेदों के अनुसार युगपत् बहुविवाह निषिद्ध है। महर्षि दयानंद जी भी सत्यार्थप्रकाश में यही लिखते हैं-


"प्रश्न-स्त्री और पुरुष का बहु विवाह होना योग्य है वा नहीं?

(उत्तर)-युगपत् न अर्थात् एक समय में नहीं |"

( सत्यार्थप्रकाश, चतुर्थ समुल्लास)


अतः वेद और महर्षि दयानंद के अनुसार दशरथ का बहुविवाह करना कदापि सही नहीं था।वो कार्य गलत ही था।बहुविवाह करने से सौतिया डाह,द्वेष, प्रतिस्पर्धा, प्रेम बाँटने में पक्षपात, एक सौत का दूसरी के विनाश के प्रयत्न आम तौर पर होते हैं

दशरथ की ही तीसरी पत्नी ने मंथरा के भड़काये जाने के बाद दो वर दान मांगे और उनके ज्येष्ठ पुत्र रामचंद्र डी का वियोग करा दिया। पुत्र-वियोग में दशरथ जी शोकाकुल होकर चल बसे , रानी समुित्रा का पुत्र भी वनवास चला गया और स्वयं कैकेयी के पुत्र ने , जिसके लिये इतना प्रपंच किया गया था, ज्येष्ठ भ्राता के खड़ाऊ रखकर ही शासन चलाया। अतः बहुविवाह का दुष्परिणाम दशरथ को मिला। वेद में फँसे हुये बैल की उपमा बहुविवाह करने वाले को दी गई है। ऐसा ही कुछ दशरथ के विषय में रामायण में उपमा सहित लिखा है-


उद्भ्रान्तहृदयश्चापि विवर्णवदनोsभवत्।

स धुर्यो वै परिस्पन्दन् युगचक्रान्तरं यथा।।१२।।

( अयोध्याकांड १४/१२)


'दो पहियों के बीच में फँसकर वहाँ से निकलने की चेष्टा करने वाले गाड़ी के बैल की भाँति उनका हृदय उद्भ्रान्त हो उठा था।'


यह प्रकरण तब का है, जब कैकेयी दशरथ से रामचंद्र का वनवास धर्म की दुहाई देकर मांगती है।इस श्लोक के बाद दशरथ सदा के लिये कैकेयी का त्याग कर देते हैं।


यह परिस्थिति क्यों हुई? क्सोंकि उनकी एक रानी दूसरी रानी के पुत्र को वनवास भेजना चाहती थी ताकि उसका पुत्र राजा बन सके।


राजा दशरथ चाहे कितने ही बड़े धर्मशासक क्यों न रहे हों, परंतु तीन विवाह करना उनसे अपराध हुआ, जोकि वेदविरुद्ध है। दशरथ में चाहे अनेक अच्छाइयाँ रही हों, परंतु उनके कारण उनके इस अपराध को सही नहीं ठहराया जा सकता।हमारा उद्देश्य दशरथ को व्यभिचारी और दुराचारी साबित करना नहीं है। दुराचारी रावण को कहा जा सकता है, दशरथ उससे काफी गुना बेहतर थे। हमारा उद्देश्य बस यही है कि अच्छाई होने के बाद भी एक ऐतिहासिक राजा की भूल को सही न बताया जाये। ये कुछ ऐसा ही है, कि युधिष्ठिर को धर्मराज कहकर उनके जुये खेलने को आप सही साबित करें।

राजा दशरथ पर लगे झूठे आरोपों का भी हमने 'सच्ची रामायण खंडन' में निराकरण किया है। परंतु वक्ता जी जानबूझकर रामायण के विरुद्ध मनमानी कल्पना से दशरथ जी के बहुविवाह को सही ठहराने पर तुले हुये हैं। इसलिये उनके पक्ष की समीक्षा अवश्य करनी चाहिये,ऐसा मेरा मानना है।


हमारे लिये इस आधार पर उनके रामचंद्र व अन्य तीन पुत्र आदर्श हैं, जिन्होंने एकपत्नीव्रत धर्म का निर्वहन किया। अतः इतिहास वहीं तक धर्म में प्रमाण है, जहां तक वो वेदानुसार हो।यदि किसी ऐतिहासिक व्यक्ति ने कोई वेदविरुद्ध कर्म किया, तो अवश्य अनुकरणीय नहीं है। अब आगे जिस मिनट और सेकंड पर वक्ता जी के कथनों की समीक्षा करेंगे।


।।समीक्षा।।


वक्ता जी ने ये वीडियो खासकर 'हम पांच हमारे पच्चीस' और 'भगोड़े बौद्ध' लोगों के लिये बनाया, जो दशरथ जी को व्यभिचारी ओर दुराचारी कहते हैं।


१:०१ पर कहते हैं उनको पूर्ण रूप से इसका जवाब वीडियो में मिल जायेगा। वो तो आगे पता चलेगा!


३:४९- 'दशरथ के राज्य में एक मजदूर की मजदूरी एक सोने के सिक्के जितनी थी।' कृपया रामायण से ऐसा प्रमाण दिखाइये, कि दशरथ के काल में 'एक मजदूर की आमदनी एक सोने का सिक्का थी।'


३:२२ पर आपने 'एक मजदूर की आमदनी से अर्थव्यवस्था का पता चला है'


समीक्षा-

इस पर आपने 'हेनरी' नामक अर्थशास्त्री का नाम लिया है। कृपया बतावें, ये आपका 'हेनरी' रामायण से बड़ा है,जो आप इसकी बात प्रमाण रूप में रख रहे हैं? हमें आपकी बात का समर्थन करने वाला श्लोक रामायण में नहीं दिखा। यदि आपने ऐसा कोई श्लोक देखा हो,तो प्रस्तुत करके हमें व दर्शकों को कृतार्थ करें। यदि कहो कि हेनरी अपने विषय का रिसर्चर है,तो ठीक नहीं। रामायण के विरुद्ध मनमाना कोई कुछ भी बोले, उसे न मानना चाहिये।


४:४७- महाराज दशरथ कहते हैं 'न कदर्यो....' इत्यादि फिर बोले- 'इस प्रकार महाराज दशरथ कहते हैं ये बात..'


समीक्षा- माराज! ये बात राजा दशरथ नहीं कहते, ये वचन न तो दशरथ के हैं न ही रामायण के हैं। ये वचन बृहदारण्यकोपनिषद (५/११/५) तथा छांदोग्योपनिषद (५/११/१५) पर है।


'न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपो ।

नानाहिताग्निर्नाविद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुतो।।'

इसका अर्थ है-

‘मेरे राज्यमें न तो कोई चोर है, न कोई कृपण , न कोई मदिरा पीनेवाला है, न कोई अनाहिताग्नि (अग्निहोत्र न करनेवाला) है, न कोई अविद्वान् है और कोई परस्त्रीगामी ही है, फिर कुलटा स्त्री (वेश्या) होगी ही कैसे ?’


वक्ता जी भी कुछ ऐसा ही अर्थ करते हैं।


ये राजा अश्वपति की उक्ति है, दशरथ की नहीं। राजा अश्वपति व छांदोग्य-बृहदारण्यक का वचन दशरथ के नाम से देना आपका प्रमाद है। मजे की बात है कि वक्ताजी के साक्षी स्वामी जगदीश्वरानंद जी ने भी छांदोग्योपनिषद व राजा अश्वपति का उल्लेख किया है। परंतु भगवान् जाने, इनको ऐसा क्यों न दिखा। पर हो सकता है कि वाल्मीकि जी दशरथ जी के मुंह से जो श्लोक बोलना चाहते हो, वो वक्ताजी पर इल्हाम हो गया!


५:००-' राजा कामी, व्यभिचारी, दुराचारी होता तो प्रजा भी वैसी ही होती।'


समीक्षा-

महोदय! आपने जो अब तक अयोध्या की प्रजा की वर्णन किया है कि वहां कोई कामी नहीं,चोर नहीं, सब संपन्न थे आदि आदि ये केवल अर्थवाद है। कहीं पर भी १००% आदर्श लोग नहीं रहते। अच्छे-बुरे हर जगह होते हैं। हां, यह संभव है कि ऐसे बुरे लोग बहुत कम रहे हों, पर वे सर्वांश में ही नहीं थे- यह कहना बस अतिशयोक्ति है। ध्यान रहे, इक्ष्वाकुवंश का राज्य पूरे भू-मंडल पर था। और उसमें रावण और बालि जैसे व्यभिचारी राक्षसादि भी हुये, जिनको रामचंद्र ने दंड दिया।

रामायण में दशरथ को कई जगह कामी, काममोहित कहा गया है । इससे पता चलता है कि राजा दशरथ ने काममोहित होकर ही तीन विवाह किये थे। जो भी हो, पर हम पांच, हमारे पच्चीस वालों से वो बेहतर तो थे ही।


देखिये, रामायण में लिखा है-


ततः परमुवाचेदं वरदं काममोहितम्।।( अयो.११/२३)


'तदनंतर कैकेयी ने काममोहित होकर वर देने के लिये उद्यत राजा से इस प्रकार कहा-।'


कामी हस्तेन संगृह्य मूर्धजेषु भुवि स्थितम्।(अयो.११/४)


'महाराज दशरथ काम के अधीन हो रहे थे।'


ततः परमुवाचेदं वरदं काममोगितम्।।(अयो.११/१७)


' इस प्रकार काममोहित होकर वर देने को उद्यत हुये राजा दशरथ को अपनी मुट्ठी में करके देवी कैकेयी ने पहले प्रशंसा की।'


विपरीतश्च वृद्धश्च विषयैश्च प्रधर्षितः।(अयो.२१/३)


लक्ष्मण जी कहते हैं- 'एक तो वे बूढ़े हैं,दूसरे विषयों ने उन्हें वश में कर लिया है।'


इस तरह रामायण से कई प्रमाण मिल सकते हैं, जिससे सिद्ध होता है कि राजा दशरथ विषयों के अधीन व काममोहित थे। वरना पुत्रेष्टि यज्ञ से संतानोत्पत्ति तो कौसल्या से भी संभव थी, वरना दो अन्य विवाह क्यों करते?


५:१६- दशरथ ने केवल कौसल्या के साथ ५९ साल तक जीवन व्यतीत किया।


समीक्षा-- ये वक्ताजी का सबसे बड़ी गलती है। क्या वक्ता जी रामायण में ऐसा दिखा सकते हैं कि '५९ साल तक केवल कौसल्या के साथ रहे,फिर उनसे पूछकर बाकी दो विवाह किये।और ६० वर्ष की आयु में पुत्र पाये'?


रामायण में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है। आरंभ में ही तीन पत्नियों का उल्लेख एक साथ ही आया है।(आगे प्रमाण देंगे।)


ऊनषोडषवर्षो मे रामो राजीवलोचनः।(बालकांड २०/२)


'महर्षे! मेरा कमलनयन राम अभी पूरे सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है।'


इसी सर्ग में आगे कहते हैं-


'षष्टिवर्ष सहस्राणि जातस्य मम कौशिक।।१०।।

( बालकांड २०/१०)


' कुशिकनंदन! मेरी अवस्था साठ वर्ष की(आपके व स्वामी जगदीश्वरानंद जी के अनुसार) हो गई।'


अतः पता चला कि जब दशरथ की आयु ६० वर्ष थी, तब रामचंद्र की आयु लगभग १५ साल तो रही हा होगी। कुल मिलाकर रामचंद्र की उत्पत्ति के समय दशरथ की आयु ६०-१५= ४५ बनती है। यानी रामचंद्र के पैदा होने के समय उनकी आयु ४४-४५ वर्ष की रही होगी। यह स्थापना मेरी नहीं, बल्कि आर्यविद्वान, ऋग्वेद व निरुक्त के भाष्यकार पं ब्रह्ममुनि जी की है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'रामायण की विशेष शिक्षायें' में यह निष्कर्ष निकाला है, जो उचित ही है।


अतः इस आधार पर वक्ता जी की लचर स्थापना चिंत्य है।


५:४८- जब लगा कि वारिस नहीं हुआ,तब कौसल्या से अनुमति लेकर सुमित्रा से विवाह किया।


समीक्षा-

हम साबित कर चुके हैं बहुविवाह का क्रमिक वर्णन रामायण में नहीं है। रामायण में शुरुआत ही से बहुपत्नियों का ही उल्लेख है-


ततः स गत्वा ताः पत्नीर्नरेंद्रो हृदयंगमाः।

उवाच दीक्षा विशत यक्ष्येsहं सुतकारणात्।।

( बाल.८/२३,२४)


'वहां जाकर नरेश ने अपनी प्यारी पत्नियों से कहा- 'देवियो! दीक्षा ग्रहण करो मैं पुत्र के लिये यज्ञ करूंगा।'


'श्रीमांश्च सह पत्नीभी राजा दीक्षामुपाविशत्।।(बाल.१३/४१)


'पत्नियों सहित श्रीमान् अवधनरेश ने यज्ञ की दीक्षा ली।'


कहीं पर भी ऐसा नहीं लिखा है कि ५९ सालों तक कौसल्या से संतानोत्पत्ति न होने पर उन्होंने प्रथम पत्नी से अनुमति लेकर सुमित्रा से विवाह किया। ऊपर हम दर्शा चुके हैं कि रामचंद्र आदि के जन्म तक ( क्योंकि चारों के जन्मसमय में अधिक अंतर नहीं है।) उनकी आयु ४४-४५ थी। तब तीन पत्नियों से ४ पुत्र हुये। अतः ६० साल तक तीन पत्नियां करते रहे फिर पुत्र उत्पन्न किये, यह बात मिथ्या हो जाती है।


६:००-" यह सब गपोड़े मिला दिये ' अब तक आपने खुद कितने गपोड़े मारें हैं, और कितने मारेंगे?


६:२९- पुत्रेष्टि के साथ अश्वमेध यज्ञ करने की ठानी।


७:१२- अश्वमेध यज्ञ पुत्र प्राप्ति के लिये हुआ।


समीक्षा- पाठकों! रामायण में पुत्रेष्टि यज्ञ की प्रकरण ही उचित है, अश्वमेध का पूरा प्रकरण पीछे से मिलाया गया है। पुत्र उत्पन्न करने हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ का विधान है और राज्यविस्तार हेतु अश्वमेध यज्ञ का। यह बात मिलावटकर्ता ने जबरन बनाकर डाल दी है कि अश्वमेध पुत्र प्राप्ति के लिये किया। इसका कारण यह है कि रामायण में मध्यकालीन हिंसामय यज्ञ दिखाये जायें। रामायण के अश्वमेध प्रकरण में घोड़े की बलि,उसके अंगों की आहुति, उसके मांस की गंध कोे दशरथ द्वारा सूंघा जाना, इन सबके पूर्व घोड़े के संग रानियों का संभोग आदि आते हैं। अतः यह पूरा प्रकरण प्रक्षेप है। अश्वमेध का शास्त्रों में कहीं भी पुत्र प्राप्ति हेतु करने का विधान नहीं है। यदि मान भी लें, तो अश्वमेध पूरा होने के बाद ब्राह्मण चार पुत्र होने का वर देते हैं और फिर दुबारा पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान चलता है। भला! जब अश्वमेध से पुत्र हो रहा था तो पुनः पुत्रेष्टि क्यों करना? अब इस पर आर्यविद्वानों में ही मतभेद है। पं राजाराम अश्वमेध प्रकरण सही मानते हैं, और जगदीश्वरानंद जी उसे हटाकर पुत्रेष्टि को। वैसे रामोपाख्यान पर्व, महाभारत, नरसिंहपुराण, विष्णुपुराण, भागवत, कंबरामायण, मानस आदि में पुत्रेष्टि यज्ञ का ही उल्लेख है। यदि मूल रामायण में अश्वमेध होता,तो इनमें भी होता। अतः पुत्रेष्टि यज्ञ का प्रकरण सही है और अश्वमेध का गलत। ( वो अलग बात है कि पुराने टीकाकारों के विरुद्ध गीताप्रेस ने अश्लील व हिंसापरक वर्णनों की लीपापोती कर दी है।)


वक्ताजी इसका निर्णय नहीं कर सके। कोई बात नहीं! उनको लगातार हर दिन वीडियो बनाने थे, इसलिये उनको न तो किसी स्वाध्येयता से पूछने का समय मिला न खुद शोध करने का।


७:४४- तक कहते हैं दशरथ ने यज्ञ किया और रानियों के शरीर का बल बढ़ाया और शुद्धि यह काम कौसल्या के साथ भी हो सकता था, तब बाकी दो स्त्रियों से क्यों विवाह किया? यदि उस समय हर कोई यज्ञ करता था, तो दो पत्नियां करने के पहले ही कर लिये होते।


७:५१- जिस घर में यज्ञ नहीं होता,वो घर श्मशान है- यह कैप्शन आया है।


समीक्षा- यह कैप्शन 'गीता' के नाम से आया है। कृपया गीता में ऐसा श्लोक प्रस्तुत करें।


८:०६ - अश्वमेध यज्ञ पुत्र प्राप्ति हेतु हुआ।


समीक्षा- पूर्ववत्


८:२४- तीनों रानियों को एक-एक पुत्र पैदा हुये।


८:४३- में वही बात कहते हैं कि सुमित्रा के दो पुत्र हुये थे। इन दोनों कथनों में परस्पर विरोध है। पिछला कथन सोलह आने मिथ्या है और वक्ता जी का प्रमाद बताता है।


समीक्षा-

यहां पर दोनों जगह परस्पर विरोधी कथन है। बालकांड १८/१०,१३,१४ में रामादि की उत्पत्ति आई है। यहां १३वें श्लोक में सुमित्रा के दो पुत्र- लक्ष्मण व शत्रुघ्न हुये, ऐसा कहा गया है। अतः वक्ताजी का प्रमाद ही है कि 'तीनों रानियों को एक-एक पुत्र हुआ'।


९:००- मैं जो बताता हूं वो रामायण में है,जो नहीं बताता हूं वो भी है। परंतु दशरथ जी ने ५९ साल तक कौसल्या से विवाह किया, उनसे पुत्र न होने पर सुमित्रा व तत्पश्चात कैकेयी से विवाह किया- यह बात कहीं नहीं है।


समीक्षा- ये वक्ताजी की मनगढ़ंत बात है।


९:४९- तक दशरथ ने अपने राज्य को चलाने के लिये ५९ वर्ष में कौसल्या से विवाह किया और ६० वर्ष में रामचंद्र को पाया।


समीक्षा- पूर्ववत्। बिना प्रमाण का मिथ्या लेख।


१०:३७- कहते हैं कि 'षष्टिवर्ष सहस्राणि' में 'सहस्र' के तीन अर्थ हैं- हजार,अनेक और एक।


समीक्षा- सहस्र का अर्थ एक वर्ष किस कोश में लिखा है?


११:०१ - उपरोक्त वचन का अर्थ बताते हैं कि 'साठ साल की आयु में मैंने पुत्र प्राप्त किया है।'


समीक्षा- यह सोलह आने गलत अर्थ है। आपने आगे-पीछे दोनों श्लोकों को जोड़कर गलत निष्कर्ष निकाला है।


'षष्टिर्वर्ष सहस्राणि जातस्य मम कौशिक।।१०।।' इसका सीधा अर्थ है- 'मुझे अब जन्म लिये ६० साल हो गये हैं।'


अब बताइये, एक ही सर्द में 'ऊनषोडष' व उपरोक्त बात आई है। तब क्या दशरथ जी रामचंद्र के उत्पन्न होने के बाद सदैव ६० साल के ही रहे? उनकी आयु तब ७५ होनी थी। परंतु उन्होंने ४५ वर्ष में रामचंद्र को पाया, ऐसा पं ब्रह्ममुनि जी कहते हैं।


११:५३- ११ मास में राम जी उत्पन्न हुये।


समीक्षा- रामायण कहती है-

ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।।८।।

कौसल्याजनयद् रामं दिव्यलक्षणसंयुतम्।।१०।।


'तब बारहवें मास में चैत्र शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को .... कौसल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त रामचंद्र को जन्म दिया।'


( बालकांड १८/८,१०)


आगे पाठक स्वयं विचार करें।


१२:४२- राजा के ऊंचे आदर्श थे।


समीक्षा- बहुविवाह करना वेद में कहीं आदर्श लिखा हुआ है?


१३:४४- आज के बाद दशरथ के विरुद्ध कहने कोई हिम्मत नहीं करेगा


१३:५६- एक-एक विषय पर वीडियो बनाने का उद्देश्य है कि किसी विधर्मी के आक्षेप करने पर उसके सामने ये प्रस्तुत किया जाये।


१४:०९- प्रचार प्रसार करना है तो सत्य का कीजिये।


१५:१४- आज के बाद राजा दशरथ पर उठाने लायक हमने नहीं छोड़ा है।


समीक्षा- हमने सप्रमाण आपके वीडियो पर प्रश्न किये हैं।यह केवल गाल बजाना ही है कि 'किसी को सवाल उठाने लायक नहीं छोड़ा' गया।


निष्कर्ष- सभी वक्ताजी व वक्तामंडली से निवेदन है कि वो इन बिंदुओं पर गौर करें व वक्ता जी को नये वीडियो में इनका निराकरण करने का आग्रह करें। अथवा आपकी सारी बातें सही हों, तो मेरे लेख का सप्रमाण उत्तर देवें। यह लेख हम दशरथ जी के विरुद्ध नहीं, उनके प्रति तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुतीकरण को विरुद्ध लिख रहे हैं। हमारे मत में राजा दशरथ बहुत पुण्यात्मा थे, बस उनका बहुविवाह करना कदापि धर्म में प्रमाण नहीं हो सकता।अतः कृपाकर कोई भक्त हमें 'हिंदू धर्म/आर्य समाज या आर्य इतिहास का विरोधी' कहने का दुस्साहस न करे। मुझे उपाधियाँ (दो परोक्ष उपाधियाँ 'स्वघोषित विद्वान' और 'मदारी' वक्ताजी पहले ही दे चुके हैं। और रात के देर तक जगने के लिये उल्लू और चोर भी कह चुके हैं।) देने की अपेक्षा मेरा लेख पढ़कर विचार करे। अब देखना यह है कि 'आर्य' उपाधिधारी वक्ता महोदय क्या 'आर्यसमाज' के दस नियमों में से इस नियम- 'सत्य को ग्रहण करने व असत्य को त्यागने में सदा तत्पर रहना चाहिये।'

को कितना निभाते हैं? या फिर उन पर महर्षि दयानंद की यह उक्ति ठीक चरितार्थ होगी, कि- 'मनुष्य का आत्मा सत्यासत्य को जानता है,पर हठ,दुराग्रह व प्रयोजन सिद्धि आदि के लिये असत्य को भी मान लेता है।'(ये उक्ति बहुत प्रचलित है।)


धन्यवाद ।

 
 
 

1 comentário


vijayvarshachauhan
09 de jul. de 2020

विवेचनात्मक उत्तम लेख। 🌹

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