स्त्रियों को भी यज्ञोंपवित वा वेद आदि पढ़ने का अधिकार है।
- Aryavart Regenerator
- Jul 8, 2020
- 3 min read
।।ओ३म् ।।
स्त्रियों को भी यज्ञोंपवित वा वेद आदि पढ़ने का अधिकार है।
-निशांत आर्य
वर्तमान समय में यह मुद्दा पुनः जोर पकड़ा है। यद्यपि स्त्री पुरूषों के समान
अधिकार की बात सिद्धांतः समाज ने स्वीकार कर लिए हैं। आर्यो ने इसके लिए अनेक आंदोलन आदि किये और स्त्रियों के लिए गुरुकुल वा विद्यालय आदि खोल कर स्त्रियों को वो सभी अधिकार दिलाये जो उनके क्षेत्र में उनको मिलना चाहिए था । ऐसा करने पर सरकार ने भी इस समान अधिकार को मान्यता दे दी और स्त्रियों का पढ़ना पढ़ना आदि भारत वर्ष में पुनः आरम्भ हो गया।
किन्तु आज भी ऐसे लोगो कि कमी नही है जो धर्म के आड़ में स्त्रियों को इस अधिकार से वंचित रखना चाहते है ।
अतः शास्त्रीय आधार पर इस विषय में कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये जाते है जिस से यह सिद्ध हो जाएगा कि सनातन धर्म के संस्कारो और विधानों में भी स्त्रियों को उपवीत व यज्ञाधिकार आदि प्राप्त है।
भारतीय वर्णाश्रम व्यस्था में 16 संस्कार से संस्कारित करना आवश्यक बताया गया है । उन सोलह संस्कार में यज्ञोंपवित नामक संस्कार भी है ।
सर्व प्रथम हम वेद अथर्ववेद कांड११ सूक्त५ मन्त्र11 प्रस्तुत करना चाहेंगे।
●ब्रह्मचर्येण कन्या युवानमं विन्दते पतिम्...
अर्थात- जैसे लड़के ब्रह्मचर्य-सेवन सेवन से पूर्ण विद्या और सुशिक्षा को प्राप्त हो कर युवती, विदुषी, और अपने अनुकूल ,प्रिय सदृश्य स्त्रियों के साथ विवाह करते है, वैसे (कन्या)कुमारी (ब्रह्मचर्येण)ब्रह्मचर्य सेवन से वेदादि शास्त्रों को पढ़ पूर्णविद्या और उत्तम शिक्षा को प्राप्त युवती होके पूर्ण युवावस्था में अपने सदृश्य प्रिय विद्वान (युवानम्)पूर्ण अवस्था युक्त पुरुष को (विन्दते)प्राप्त होवे
प्रतुत मंत्र में ब्रह्मचर्य सेवन वेदादि पढ़ कर विद्वान बन कर विवाह करने की बात होने से स्त्रियों को वेदादिकार की सिद्धि होती है ।
इसी प्रकार यजुर्वेद २६,२ में कहा है की-
●यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्यः ।
ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च स्वाय चारणाय ।।
परमेश्वर कहता है कि (यथा) जैसे मैं (जनेभ्यः) सब मनुष्यों के लिये (इमाम्) इस (कल्याणीम्) कल्याण अर्थात् संसार और मुक्ति के सुख देनेहारी (वाचम्) ऋग्वेदादि चारों वेदों की वाणी का (आ वदानि) उपदेश करता हूं वैसे तुम भी किया करो।
यहाँ भी स्वयं का उदहारण दे कर ईश्वर ने मनुष्य मात्र को वेदाध्ययन का अधिकार दिया है इस से भी स्त्रियों का वेदाध्ययन सिद्ध होता है। श्रोत सूत्रों में भी कहा है कि -इमं मन्त्रं पत्नी पठेत्। अर्थात इस मंत्र को पत्नी पढ़े। यहाँ भी पत्नी को मंत्र पढ़ने के आदेश से वेद पढ़ना सिद्ध होता है
कोई भी हो वेद मंत्रो को तभी पढ़ सकता है जब वो वर्णउच्चारण शिक्षा आदि को पढ़े अन्यथा इसके अभाव से पढ़ना सम्भव नही और शिक्षा शास्त्र वेदांगों के अन्तर्गत होने से सिद्ध है कि स्त्रियां सांगोपांग सहित वेद पढ़े। सांगोपांग सहित पढ़ना तभी संभव है जब ब्रह्मचर्य आदि का पालन करे और हमने पूर्व ही अथर्ववेद के प्रमाण से स्त्रियों का ब्रह्मचर्येण..आदि से वेदाध्ययन सिद्ध किया है ।
अब हम कुछ प्रमाण स्त्रियों के उपनयन को ले कर प्रस्तुत करते है जिस से यह सिद्ध हो जाएगा की स्त्रियों को यज्ञोंपवित का अधिकार भी वेद सम्मत है।
ऋग्वेद में १०,१०९,४ में कहा गया है की भीमा जाया ब्राह्मणस्योपनीता.....
यहां पर भीमा जाया आदि स्त्रीलिंग में पर्युक्त हुए अतः ब्राह्मण शब्द जो षष्ठ सम्बन्ध में प्रयोग हुए है वह पुमान स्त्रिया आदि अष्टाध्यायी से प्रकरण अनुसार पुरुष और स्त्री दोनों के लिए ग्रहण होगा उपनीत शब्द को ले कर यहां ध्यान देना चाहिए की यह तीनो लिंग इसके रूप चलते है
अतः उपनीत शब्द के निम्न अर्थ होते है-१ कृतोपनयनसंस्कारे “अथो- पनीतं विधिवद्विपश्चितः” रघुः । २ ज्ञानलक्षणासन्नि- कर्षेण ज्ञाते च “उपनीतं विशेषणतयैव भासते मानसे तु नायं नियमः” प्राचीनगाथा उपनयशब्दे दृश्या ३ समीपे प्रापिते ४ उपस्थापिते च ।
अतः इस से स्त्रियों के लिए उपनयन की सिद्धि हो जाती है।
अतः वेद से भी स्त्रियों का उपनयन सिद्ध होता है
ठीक वैसे ही यमस्मृति में भी स्त्रियों के उपनयन यज्ञ की बात सिद्ध होती है।
पुराकल्पे तु नारिणां मौञ्जीबन्धनमिष्यते। अध्यपनं च वेदानां सावित्रीवाचनं तथा।।
अर्थात प्राचीन शास्त्रों में स्त्रियों के उपनयन संस्कार, सावित्री जप सन्ध्या यज्ञ आदि का विधान है तथा वेदों के अध्ययन अध्यपन का विधान है ।
शास्त्रो में अन्यत्र अनेक प्रमाण है जिस से स्त्रियों के वेदाध्ययन व यज्ञ साथ ही अन्य कर्मकांड या यज्ञोंपवित आदि शास्त्र सम्मत बताया गया है फिर भी कुछ लोग जो इसका विरोध करते है सो स्वार्थ वस या शास्त्र से अनभिज्ञ होने से करते है विद्वानों का काम है कि वेद का पालन करे क्यो की नास्तिकों वेद निंदकः जो वेद की बात को नही मानता है नही करता है वो वेद निंदक होने से नास्तिक कहाता है। अतः हम वेद के मार्ग पर चल कर ईश्वर आज्ञा का पालन कर के प्रीति पूर्वक रहे ।
धन्यवाद महोदय ।।🙏🚩
अत्युत्तम जानकारी। 👍🙏🌹