शारीरिक भाष्य महर्षि दयानंद जी को मान्य नही था ।
- Aryavart Regenerator
- Aug 28, 2020
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श्री आदरणीय Bhavesh Merja जी ने एक पोस्ट लिखा था जिसका शीर्षक था" शंकर भाष्य और स्वामी दयानंद ।
इस लेख में वे एक स्थान पर वे
लिखते है कि-
"स्वामी दयानंद जी ने अपने ग्रंथों में कहीं भी शांकर भाष्य को उद्धृत करके उसका प्रत्यक्ष खंडन नहीं किया है। शांकर मत या अद्वैतवाद का तो उन्होंने विशद खंडन किया है, परंतु शंकराचार्य जी के भाष्य को उद्धृत कर उसका विधिवत् खंडन उन्होंने नहीं किया है और न कहीं उन्होंने शांकर भाष्यों को सीधे सीधे "त्याज्य" या "वेद विरुद्ध" कोटि के लिखे हैं।"
मेरे विचार से भावेश जी का यह कथन चिन्त्य है ।
क्योंकि महर्षि दयानंद जी के दृष्टि में शारीरिक भाष्य फिर भी प्रमाण कोटि में नही था यदि ऐसा होता तो वो तृतीय समुल्लास में ऐसा क्यो लिखते की-वेदान्तसूत्र पर वात्स्यायनमुनिकृत भाष्य अथवा बौधायनमुनिकृत भाष्य वृत्ति सहित पढ़ें पढ़ावें।
यदि शारीरिकभाष्य को वो अध्ययन अध्यपन के लिए आवश्यक समझते तो शंकर भाष्य भी वेदान्त पर पढ़ाने को कहते किन्तु महर्षि उसे आवश्यक नही समझते थे इसी लिए अध्ययन अध्यपन के क्षेत्र में उन्होंने वेदान्त सूत्र पर शारीरिक भाष्य को न रख कर वात्स्यायन और बौधायन मुनि कृत भाष्य का ही विधान किया महर्षि के इस कथन से शारीरिक भाष्य का निषेध स्वतः हो जाता है इसी लिए महर्षि शंकर मत के खंडन के दौरान शारीरिक भाष्य को उधृत कर के खंडन करे यह आवश्यक नही जान पड़ता है ।
इस पर अन्य आर्य जन भी अपना मत प्रगट करें ।
-निशांत आर्य ।
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